महावीर स्वामी की जीवनी पर निबंध

महान भगवान महावीर स्वामी जीवनी

महावीर स्वामी जी जो जैन धर्म के 24 वे तीर्थंकर है। उन्होंने हमेहा लोगो को प्रेरणा दी है। कि अहिंसा व सत्य के मार्ग पर चले। सभी के साथ आपस में प्रेम के साथ रहे। महावीर स्वामी जी हिंसा जाति पाती भेदभाव पशुबली इन सबसे सबको दूर रहने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे। इनका पूरा जीवन त्याग व तपस्या में बिता। इनका मानना था कि कीड़े मकोडो और जीव जंतु को में मरना मानव जीवन का सबसे बड़ा पाप था और बुद्ध और महावीर स्वामी दोनों ने ही एक जैसा ही ज्ञान देकर लोगो को प्रोत्साहित किया। और अब आगे हम महावीर स्वामी की जीवनी के बारे में विस्तारपूर्वक पड़ेंगे।

महावीर स्वामी जी का जन्म स्थान।

महावीर स्वामी जी का जन्म 599 ईसा वर्ष पहले वैशाली में हुआ। महावीर स्वामी गणतंत्र क्षत्रिय कुल्डलपुर में पिता सिद्धार्थ माता त्रिशला के यह तीसरी संतान के रूप में इन्होंने जन्म लिया और यह अतियाधिक बलवाली तेजस्वी बुद्धिमान साहसी ज्ञानी होने के कारण महावीर स्वामी बने। और उन्होंने अपनी इन्द्रियों को भी जीत लिया था

जीवन की शुरुआत।

महावीर स्वामी जी ने अपना आलीशान महल और एशो आराम छोड़ कर कर इन्होंने अपना बिल्कुल साधारण सा जीवन बिताया और इनकी पूरे विश्व भर में महावीर स्वामी जो से बहुत लोग प्रेरित हुए और उन्होंने सत्य की खोज और ज्ञान की प्राप्ति की। महावीर स्वामी जी बचपन से ही बहुत ज्यादा तेज और बुद्धिमान रहे हैं और इन्होंने अपनी हर एक इच्छा पर काबू पा लिया था। और इनको अलग अलग नाम से जाना जाता है जैसे महावीर स्वामी भगवान सन्मति वर्धमान आदि नामों से जाना जाता है। उन्होंने 30 साल की उम्र से ही ज्ञान प्राप्त करना शुरू कर दिया था। कठिन तपस्या के बाद भी उन्हें सिर्फ ज्ञान ही प्राप्त हो सकामहावीर स्वामी जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्होंने बहुत से संघ बनाकर जगह जगह घूम कर अपना पवित्र संदेश लोगो तक पहुंचाया।

महावीर स्वामी का सन्यासी जीवन।

महावीर स्वामी को हमेशा से ही संसार के सुखों में कोई दिलचस्पी नहीं थी।उनके माता पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने फैसला लिया कि वह एक सन्यासी जीवन व्यतीत करेंगे।अपने भाई के माना कहने पर वह थोड़े दिन और रुक गए थे।फिर उन्होंने ज्ञान की प्राप्ति मेंसंसार की मोहमाया को पूरी तरह से त्याग दिया था। फिर उन्होंने 12साल तक एक जंगल में ज्ञान की प्राप्ति के लिए तप किया। बहुत लोग उनके उपदेशों को सुनने लग गए थे और उनके अनुयाई बन गए थे इनमें महाराजा भी थे।सब को प्रेरित किया कि जीव-जंतुओं पर दया करें और पेड़-पौधों को भी ना काटे और क्रोध न करे आपस में मिलजुलकर प्रेम के साथ रहे

महावीर स्वामी जी की शिक्षाएं और सिद्धांत कुछ इस प्रकार है।

अहिंसा-

महावीर स्वामी जी ने हमेशा से हिसा त्यागने की बात की है और अहिंसा के रास्ते पर चलने को कहा है और जितना प्रेम हम खुद से करते हैं उतना प्रेम हमें दूसरी से भी करना चाहिए। ओर कभी भी किसी को हीन भावना से न देखे।

अपरिग्रह-

उन्होंने बताया है कि इस दुनिया में दुखो का कारण ही किसी चीज के प्रति ज्यादा लगाव करना फिर उससे दूर हो जाना ही दुख बन जाता है। उन्होंने कहा है जो व्यक्ति होता है वह कभी मोह की लालसा नहीं करता।

अस्तेप-

महावीर स्वामी जी ने चोरी करना बहुत ही बुरा पापा बताया है और किसी का चुराया हुआ समान ले कर खुश होना बहुत ही बुरा काम बताया गया है।

सत्य-

महावीर स्वामी ने कहा है कि मनुष्य किसी भी स्थिति में हो और उन्हें हमेशा सच का ही सहारा लेना चाहिए कभी झूठ में नहीं जीना चाहिए झूठ एक बहुत ही बड़ा पाप माना गया है।

ब्रह्माचार्य-

महावीर स्वामी जी का मानना था कि कठिन तपस्या है। व्यक्ति इसे पूरा कर लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। महावीर स्वामी का मानना था।

महावीर स्वामी की मृत्यु।

महावीर स्वामी की मृत्यु 468 ईसा पूर्व में 72 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त किया। वर्तमान समय के भारत के बिहार राज्य के आधुनिक राजगीर के पास पावापुरी नामक स्थान में।

@Zainab Khan