रानी लक्ष्मीबाई पर निबंध।

शुरुआत जीवन

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म वाराणसी जिले के भदेनी नामक नगर में 1835 को हुआ था। उनकी माता का नाम भागीरथी था और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। बचपन से लक्ष्मी बाई शास्त्रों की शिक्षा लिया करती थी। सन 1842 उनका विवाह हो गया था। फिर बाद में वह झांसी की रानी बनी। फिर उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। लेकिन उनका बेटा चार महीने की आयु में मर गया था। फिर उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया था। उसके बाद उनके पति का निधन हो गया था। पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया था। रानी लक्ष्मी बाई को बचपन में मनु बुलाते थे।

घुड़सवारी करने में रानी लक्ष्मी बाई बचपन से ही कुशल थी।
उनके पास बहुत से घोड़े भी से जिनमे से उन्हे चुनिंदा घोड़े पसंद थे उनका नाम पवन बादल सारंगी था। इन घोड़ों में से एक बादल नाम के घोड़े ने 1858 में किले से भागने में अहम भूमिका निभाई थी। रानी महल जो की म्यूजियम में बदल गया था। जिसमे 9 से 12 वी शताब्दी तक की पुरातात्विक चीज रखी गई है। जनवरी 1858 में अंग्रेजी सेना झांसी की तरफ बढ़ गई थी। अंग्रेजी सेना ने झांसी को चारो ओर से घेर लिया था। मार्च 1858 में अंग्रेजो ने बमबारी शुरू कर दी थी।
रानी लक्ष्मी बाई ने तात्या टोपो से अपील की थी। फिर 20000 सैनिकों के साथ तात्या टोपो ने अंग्रोजो से लड़ाई की फिर उन्हे लड़ाई में विजय प्राप्त हुई। तात्या टोपो से लड़ाई के दौरान बाद मे अंग्रेजी सेना झांसी की तरफ बढ़ रही थी। उस मार्ग में आने वाले आदमी औरत को मार दिया गया था।

दो हफ्ते तक लगातार लड़ाई चलती रही फिर अंग्रेजो ने झांसी पर कब्जा कर लिया। रानी लक्ष्मी बाई अपने घोड़े बदल पर सवार होकर अपनी पीठ पर अपने पुत्र को बांध कर किसी तरह वहा से निकल गई। रास्ते में उनके पसंदीदा घोड़े की मृत्यु हो गई किसी तरह रानी लक्ष्मी बाई ने कलापी मे शरण ली फिर वह महान योद्धा तात्या टोपो से मिली 22 मई को कालपी पर भी आक्रमण कर दिया। फिर रानी लक्ष्मी बाई के साथ तात्या टोपो की भी सेना हार गई थी। एक बार और तात्या टोपो और रानी लक्ष्मी बाई फिर ग्वालियर की तरफ भाग पड़ी और ग्वालियर का युद्ध लड़ा था। जिसमे रानी लक्ष्मी बाई और तात्या टोपो की सभी सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के किले पर कब्जा कर लिया था।

जनवरी 1858 मे अंग्रेजी सेना ने झांसी की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया। और झांसी को पूरी तरह घेर लिया तकरीबन दो हफ्तों तक इस लड़ाई के बाद अंग्रेजो ने शहर पर कब्ज़ा कर लिया। लेकिन रानी लक्ष्मी बाई अपने पुत्र को लेकर अंग्रेजो से बचकर भाग निकली। रानी लक्ष्मी बाई झांसी शहर से निकल कर कालपी पहुंच कर तात्या तोपो से मिली।

7 मार्च 1984 ब्रिटिश सरकार ने एक घोषणा करी थी। जिसके मुताबिक झांसी को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलने को कहां गया। रानी लक्ष्मी बाई को ब्रिटिश द्वारा एलिन के आदेश मिलने पर रानी लक्ष्मी बाई ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा मे यह झांसी नही दूंगी। अब झांसी एक केंद्र बिंदु बन गया। रानी लक्ष्मी बाई ने कुछ राज्यों की मदद लेके कुछ सेनाएं तैयार की जिसमे सिर्फ पुरुष ही नही बल्कि महिलाएं भी शामिल थी। जिन्हे युद्ध करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। उनकी सेना में कई महारथी भी थे जैसे सुंदर, काशी,बक्श आदि। उनकी सेना में तकरीबन 14000 सैनिक शामिल थे।

10 मई 1857 में मेरठ में भारतीय विद्रोह प्रारंभ हुआ। जिसका कारण था कि जो बंदूक की नई गोलियां थी उसने गौमास और सुअर की चर्बी की परत चढ़ी थी इससे हिंदुओ की धार्मिक परंपराओं पर ठेस पहुंची थीं। इस वजह से ये विद्रोह पूरे देश भर में फैल गया था। इस लड़ाई को रोकना ब्रिटिश सरकार के लिए अहम हो गया था। इसके बाद सरकार ने झांसी को फिलहाल रानी लक्ष्मी बाई के अधीन कर दिया था। रानी लक्ष्मी बाई को अक्टूबर 1857 मे अपने पड़ोसी देशों दतिया व ओरछा के राजाओं के साथ युद्ध करना पड़ गया। क्योंकि उन्होंने झांसी पर चढ़ाई करी थी।

रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु कैसे हुई?

अंग्रेजो ने एक हफ्ते तक लगातार गोलियां चलाते रहे किंतु वह किला जीत न पाएं। रानी लक्ष्मी बाई और उनकी प्रजा ने सोच लिया था कि आखरी सांस तक किले की रक्षा करते रहेंगे। अंग्रेजी सेनाओ ने सोचा सैन्य बल से किला जीत पाना मुश्किल है। उन्होंने कूटनीति अपनाई ओर झांसी के एक विश्वासघाती को अपने में शामिल कर लिया जिसने किला का दक्षिणी द्वार खोल दिया। सेना किले में घुस कर लूटपाट ब हिंसा की दृष्टि पैदा कर दी। उसके बाद रानी लक्ष्मी बाई घोड़े पर सवार व एक हाथ में तलवार लिए अपनी पीठ पर अपने पुत्र को लिए उन्होंने नारी शक्ति का रूप धारण किया। जिसके तहत शत्रु दल शांत हो गए। इसके बाद रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु 1858 में हो गई थी।