# इस्लाम धर्म में हुए धर्मयुद्ध से आप क्या समझते हो ?
अरब के एक स्थान मक्का से पैगम्बर मुहम्मद साहब के द्वारा 612 ई . में शुरू किया गया एक नए धर्म को जिसे हम आज इस्लाम धर्म के नाम से जानते है। इस धर्म में भी काफी ज्यादा उतार -चराव देखने को मिलते है। पैगम्बर मुहम्मद के मृत्यु के बाद से देखा जा सकता है।
धर्मयुद्ध “1095 से 1291 ई . के बीच ईसाइयों और अरब के मुसलमानों के बीच युद्ध हुआ जिसे धर्मयुद्ध के नाम से जाना जाता हैं। पवित्र युद्ध का जिहाद उन युद्धों को कहते है। जो मध्यकाल में फिलिस्तीन को प्राप्त करने के लिए यूरोपीय ईसाइयों ने अरबों मुसलमानों से लड़ा इसी को हम धर्मयुद्ध के नाम से जानते है। धर्मयुद्ध तीन रूप में देखा जा सकता है।
(1) प्रथम धर्मयुद्ध :- धर्मयुद्ध 1098 ई. और 1099 ई . में फ़्रांस और इटली के सैनिकों ने सीरिया में एटीओक और जेरुसलम को जीता था। ईसाइयों और जेरूसलम मे मुसलमानों और यहूदियों की हत्या कर दी जा रही थी। ईसाइयों ने सीरिया और फिलिस्तीन के हिस्से में इस धर्मयुद्ध के द्वारा चार राज्य स्थापित कर दिया। इन जगह को “आउटरैमर ” कहा जाता हैं
(2)दितीय धर्मयुद्ध :- कुछ समय तक ही आउटरैमर परदेश ईसाइयों के अधीन सुरक्षित रहा। परन्तु तुर्कों ने 1144 ई में एडेररसा पर अधिकार कर लिया तो पोप ने एक दूसरे धर्मयुद्ध (1145-1149 ) के लिए अपील की। एक जर्मन और फ्रांसियो सेना ने दमिश्क पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन उन्हें हरा कर घर लौटने के लिए मजबूर कर दिया गया। इसके बाद आउटरैमर की शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती गई।
धर्मयुद्ध का जोश अब खत्म हो गया और ईसाई शासकों ने विलासिता से जीना और नए-नए इलाकों के लिए लड़ाई करना शुरू कर दिया। सलाह अल-दीन (सलादीन) ने एक मिस्त्री-सीरियाई साम्राज्य स्थापित किया और ईसाइयों के विरूद्ध धर्मयुद्ध करने का फैसला किया और उन्हें 1187 मे पराजित कर दिया। उसने पहले धर्मयुद्ध के एक शताब्दी बाद, जेरुसलम पर फिर से कब्जा कर लिया। उस समय के अभिलेखों से संकेत मिलता है कि ईसाइयों के लोगों के साथ सलाह अल-दीन का व्यवहार काफी ज्यादा खराब था, जो विशेष रूप से उस तरीके के व्यवहार के वितरित था, जैसा पहले ईसाइयों ने मुसलमानों और यहूदियों के साथ किया था।