सम्राट अकबर का जीवन परिचय।

अकबर का जीवन परिचय

सम्राट अकबर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में जानने का प्रयास करते है। सम्राट अकबर भारत में अपने शासनकाल कर समय भारत में सभी क्षेत्रों में सुधार किए जिससे की भारत के लोगों द्वारा सम्राट अकबर को मुगल साम्राज्य के अन्य शासकों की तुलना में अधिक स्नेह प्राप्त हुआ।

अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 ई. मे आमरकोट के राजपूत राजा राणा विरसाल के यहाँ हुआ उनकी माता का नाम हमीदाबानो बेगम तथा पिता का नाम हुमायूँ था इनका पालन पोषण जीजा तथा माहम अनगा ने किया इनके पिता की मृत्यु के समय इनकी आयु केवल 13 वर्ष थी ये प्रारम्भिक 3 वर्ष अस्करी के संरक्षक मे रहे तथा उसके बाद मुनीम खां तत्पश्चात् बैरम खां 1560ई. तक पंजाब के गुरुदासपुर जिले के कलानोंर में हुमायूँ की मृत्यु का समाचार प्राप्त होने पर उनके संरक्षक बैरम खां ने फरवरी 1556 ई. में अकबर का उसी जगह पर ईटों के सिंहासन पर राज्याभिषेक कराया. इनके शिक्षक अब्दुल लतीफ जी थे।

इनका शासन काल 1556-1605 रहा जिसमे 1556 ई. में जब अकबर शासन नियुक्त हुआ वह अल्पव्यस्क था। इसीलिए 1556-1560ई. तक बैरम खां द्वारा शासन सम्बंधि महत्वपूर्ण गतिविधियाँ करने के कारण इस काल को बैरम खां का संरक्षण काल भी कहा जाता है या ये कहना गलत नहीं होगा की शुरुआती दौर में अकबर की स्थिति मजबूत करने में बैरम खा का सबसे बड़ा हाथ था।

अकबर को कई अन्य नाम से भी जाना जाता है जैसे कि अकबर ए आज़म, शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह अकबर ने अपने जीवन काल में बहुत से ऐसे काम किए जिनके कारण वह इतिहास में एक प्रसिद्ध शासक साबित हुए जैसे की धर्म के प्रति उनका नजरिया हालांकि शुरुआती दौर में वह भी अन्य मुगल शासको की तरह ही गैर मुसलमानों की तरफ अत्याचारी था लेकिन जोधाबाई से विवाह पश्चात अकबर हिंदुओं के प्रति काफी उदार हो गया था तथा अन्य धर्म के लिए भी उनका रुख बदला इसी कारण अकबर ने हिंदू धर्म तथा अन्य धर्मो की अच्छी चीजों को मिलाकर 1582ई.मे “दीन ए इलाही” स्थापना की बदायूंनी और अबुल फजल ने इसे, “तौहिद ए इलाही” कहा है सामान्यतः है इसका अर्थ एक ईश्वरवाद से लिया जाता है।


दीन ए इलाही वास्तव में एक आचार संहिता के रूप में थी जिसे एक सामाजिक धार्मिक समन्वय स्थापित किया जा सकता था और यह सभी धर्म के लिए खुला था इसकी कोई विशिष्ट कर्म काणडीय पद्धति नहीं थी ना ही कोई ग्रंथ था और ना ही कोई पुरोहित वर्ग अतः इसे नया धर्म नहीं माना जा सकता

अकबर की धार्मिक नीति

  • “सुलह ए कुल” अकबर की धार्मिक नीतियों पर आधारित थी जो सार्वभौमिक सहिष्णुता या सार्वभौमिक समन्वय की बात करता है अकबर ने यह सिद्धांत अपने गुरु अब्दुल लतीफ से सीखा था।
  • 1562 ई. में जब अकबर स्वतंत्र शासक बने तो अकबर ने कुछ ऐसे सुधार प्रस्तुत किये जो अकबर की सामाजिक धार्मिक उदारता की एक झलक है।
  • 1562 युद्ध बंदियो को दास बनाए जाने पर रोक
  • 1563 तीर्थ यात्रा कर की समाप्ति
  • 1564 जजिया पर रोक
  • 1575 ई. में इबादत खाने की स्थापना सम्राट अकबर द्वारा फतेहपुर सीकरी नामक स्थान में निर्माण किया गया और हर बृहस्पतिवार को धार्मिक चर्चा का आयोजन भी किया जाने लगा।

अकबर द्वारा महजर की घोषणा 1579 ई.में जब की गई।

अगर किसी धार्मिक विषय पर धार्मिक गुरुओं के बीच मतभेद की स्थिति बनती दिखाई देती थी तो सम्राट अकबर ने महजर की संकल्पना के द्वारा यह अधिकार प्राप्त किया कि यदि उसकी अंतिम व्याख्या का अधिकार शासक के पास रहेगा। सम्राट अकबर द्वारा शासक को कुरान की व्याख्या का अधिकार से वंचित रखा गया था।

  • “इंसान ए कामिल” अकबर द्वारा यह घोषणा सर्वाधिक विवेकशील प्राणी बनना चाहता था।
  • “अमीर उल मोमिनीन” अकबर ने अपने आप को कहा वह 1258 के बाद संभावित प्रथम व्यक्ति था।
  • सीकरी की जामा मस्जिद में अकबर द्वारा क्रांतिकारी कदम उठाया गया जब अकबर ने खुत्बा पढा।
  • अकबर ने कई ईसाई पारसी जैन व हिंदू सामाजिक धार्मिक मान्यताओं को अपनाया जैसे हिंदुओं के त्योहारों में भाग लेना, तिलक लगाना, झरो का दर्शन इत्यादि 1583 ई में अकबर ने हिजरी संवत की जगह एक नए संवत् के रूप में इलाही संवत् को अपनाया।

सम्राट अकबर भारत में कौन- कौन सी भाषा का प्रयोग करते थे।

सम्राट अकबर बड़े पैमाने पर फारसी भाषा बोला करते थे। फारसी उनके शासनकाल के दौरान प्रचलित प्रशासनिक भाषा हुआ करती थी तथा इसके अलावा उन्हें हिंदी तथा कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का भी ज्ञान था तथा वह उनमें भी संवाद किया करते थे ।

अकबर द्वारा अपने शासनकाल में किए गए कुछ वित्तीय सुधार।

  • मुद्रा प्रणाली
    1577 में अकबर ने टकसाल ग्रहो में सुधार किया और दिल्ली के टकसाल का दरोगा अब्दुल सिराजी को बना दिया।
    सूबो में टकसालों के प्रमुख को “चौधरी” कहा गया जिसको कालांतर में सभी सूबो के टकसालों को अब्दुस्समद के निरीक्षण में कर देता है

सिक्को के प्रकार

  • सम्राट अकबर ने “राम सीता” सिक्को का चलन चलाया जिन पर “राम सिया” उत्कीर्ण भी देखा गया।
  • शेरशाह की मुद्रा प्रणाली के अनुरूप ही अकबर ने भी चांदी का रुपया और तांबे का दाम चलाया जो अकबर के शासनकाल में 1 चांदी का रुपया= 40 दाम था जबकि शेरशाह के काल में 1 चांदी रुपया= 64 दाम था ।
  • अकबर ने सोने के सिक्के भी जारी किया। “इलाही” जिसमें सबसे ज्यादा प्रचलित सिक्का था।
  • अकबर द्वारा जारी सबसे बड़ा स्वर्ण सिक्का सन्सब था जो 101 तोले से भी ज्यादा भारी था।
  • अकबर ने मुख्यतः दो ज्यामितीय प्रकार के सिक्के चलाए जिसमें वृताकार सिक्का “इलाही”तथा चकोर/आयताकार सिक्का “जलाली”के नाम से जाना गया।

निष्कर्ष

सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य में भारत में सबसे ज्यादा शासन करने वाले शासकों में से एक थे। सम्राट अकबर ने भारत में काफी सुधार करने का प्रयास भी की जो की काफी हत तक भारत के लिए अच्छी साबित हुई। सम्राट अकबर ने भारत के अंदर अपने शासनकाल के समय राजनिक ही नहीं धार्मिक सुधार किए।

@Kajal Sharma