# मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन करें?-Describe the process of manuscript preparation in the Mughal court?
मुगल भारत की सभी पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थी। दूसरे शब्दों में, इसे हाथों के द्वारा लिखी हुई पुस्तक भी कहते हैं। जब भारत देश पर मुगलों का शासन था तो उस समय चीन की तरह मुद्रण (छपाई) आरंभ नहीं हुई थी, इसलिए पुस्तकें हाथों से ही लिखी जाती थी। हाथों द्वारा पुस्तकें लिखना बहुत ही कठिन कार्य होता था।
मुगल काल में पांडुलिपि रचना का मुख्य केंद्र शाही किताब-खाना था। किताब-खाना का मतलब पुस्तकालय या एक ऐसा घर, जहां बादशाह द्वारा रचित कराई गई पांडुलिपियों को उस घर में संग्रह करते थे। बादशाह के आदेश पर ही नहीं पांडुलिपियों का निर्माण शुरू होता था। यह कार्य शाही किताब-खाने में ही होता था। नई पांडुलिपियों की रचना में विभिन्न लोग अपने अपने कार्य के लिए ही शामिल होते थे।
# पांडुलिपियों को लिखने में निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता था :-
1) किताब-खाना:- पहले मुगल दरबार में इस तरह की पांडुलिपि या तैयार करने के लिए एक शाही किताब घर की स्थापना की जाती थी। जिसमें पांडुलिपि को एक सुरक्षित स्थान मिल सके। किताब खाना इसलिए बनाए जाते थे ताकि तैयार पांडुलिपियों को एक सुरक्षित जगह पर रखा हुआ नहीं पांडुलिपि तैयार करने के लिए एक जगह मिल जाए।
2) कवि या लेखक :- सबसे पहले बादशाह कवि या लेखक को उस विषय के बारे में पाठ तैयार करने को कहता है तथा बादशाह के आदेश अनुसार किताब खाना को भेजता है।
3) कागज तैयार करने वाला :- कागज बनाने वाला पांडुलिपि के लिए सबसे अच्छे कागज को उपलब्ध तैयार कर आता है। पांडुलिपि का एक प्रमुख कार्य यह भी होता था कि किस कागज का प्रयोग किया जाए जो काफी अधिक समय तक कागज खराब ना हो। कागज का चयन करना भी एक बहुत अहम हिस्सा है।
4) लेखन कला :- पांडुलिपि को लिखने के लिए एक सरकंडे की नोक का प्रयोग किया जाता था, जिसे स्याही में डुबोकर प्रयोग करते थे। हर कोई व्यक्ति यह कार्य को नहीं कर सकता था इसलिए यह लिखाई का काम सुंदर लेख लिखने वाले (खुशनवीस) लोग करते थे। जिनको इस प्रकार के लिए लेख कार्य में महारत हासिल होती थी।
5) चित्रकार :- चित्रकारों का कार्य विभिन्न पाठों के आधार पर चित्रों को तैयार करना और पाठ में उस चित्र का स्थान निर्धारित करना होता था। चित्रकार शब्दों में वर्णित विषय को चित्र रूप में व्यक्त कर उसे यथास्थान लगा देता था।
6) सुलेखक :- सुलेखको का कार्य पत्रों पर सुंदर अक्षरों में पाटो को नकल तैयार करना था। जिससे कृति या रचना स्पष्ट हो। सुलेखक उस भाग का ,खाली छोड़ देते थे जिस पर उस विषय का चित्र या उस घटना का दृश्य के रूप में व्यक्त किया जा सके।
7) जिल्दसाज :- लिखाई का कार्य पूरा होने के बाद शाही किताब-घर में जिल्द सजाने वाला तैयार पांडुलिपि पर जिल्द को चढ़ाकर इस प्रक्रिया को अंतिम काले को पूरा करता था। पांडुलिपियों पर जिल्द इसलिए चढ़ाया जाता था ताकि वह सालों साल तक सुरक्षित रहे।
8) पांडुलिपि की रचना में अनेक तरह के काम करने वाले लोग शामिल होते थे। जैसे की… कागज बनाने वाले लेखक, कवि, सुलेखको का पाठक की नकल तैयार करना , चित्रकारों को चित्र बनाना तथा जल्दसाजो को पांडुलिपियों पर जिल्द चढ़ाना इस प्रकार की पांडुलिपियों का निर्माण होता था।
# निष्कर्ष:-
पूर्ण रूप से तैयार पांडुलिपि को एक कीमती वस्तु को मां बौद्धिक संपदा और सौंदर्य के काम के रूप में देखा जाता था। इस प्रकार के सौंदर्य को प्रकाश में लाकर इन पांडुलिपियों के लक्षण मुगल बादशाह कर के अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे। जैसा कि हमने देखा मुगल साम्राज्य में पांडुलिपियों का एक अलग से ही अपना महत्व शुरू से ही रहा है क्योंकि पांडुलिपि के ही द्वारा हम आज मुगलों की व्यक्तिगत जीवन के बारे में जाने में आसानी।
@Roy Akash (pkj) & Jatin Roy